पंचायत चुनाव के तीन चरणों के चुनाव परिणाम सामने आ चुके हैं, और तस्वीर चौंकाने वाली है। जो फीडबैक आ रहा है उसके मुताबिक पंचायतों में नए चेहरे चुनाव जीतकर आ रहे हैं ,और पुराने पंचायत प्रतिनिधियों में से अधिकतर को मतदाता नकार रहे हैं। इस बड़े बदलाव के पीछे चुनाव में नई टेक्नॉलजी और खासकर बायोमेट्रिक मशीन से वोटरों का सत्यापन को बड़ा कारण माना जा रहा है। पंचायत चुनाव में नए प्रयोग और परिणामों में हो रहे बदलाव को लेकर बिहार के निर्वाचन आयुक्त डॉ दीपक प्रसाद ने कहा की राज्य निर्वाचन आयुक्त ने माना कि ईवीएम से वोटिंग और खासकर बूथों पर बायोमेट्रिक से मतदाताओं का सत्यापन इस चुनाव में बराक गेम चेंजर साबित हो रहा है।
जाने इस पोस्ट मे क्या है-
- 1 बायोमेट्रिक व इवीएम से जुड़ी कुछ सवाल:
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- 3 इस चुनाव में आयोग ने क्या नया प्रयोग किए जो आपके हिसाब से बड़े बदलाव का कारण बन रहा है?
- 4 चुनाव में नए चेहरे उभरकर अधिक सामने आ रहे हैं इसकी बड़ी वजह क्या है?
- 5 तीन चरणों के चुनाव में ऐसी शिकायतें भी आ रही है कि कई बूथों पर बायोमेट्रिक सिस्टम फेल रहा?
- 6 नई टेक्नोलॉजी के कारण चुनाव खर्च में भी वृद्धि होगी, पिछले चुनावों की तुलना में खर्च कितना बढ़ा है?
- 7 आने वाले नगर पालिका चुनाव में भी बायोमेट्रिक सिस्टम का प्रयोग होगा?
बायोमेट्रिक व इवीएम से जुड़ी कुछ सवाल:
- इस चुनाव में आयोग ने क्या नया प्रयोग किए जो आपके हिसाब से बड़े बदलाव का कारण बन रहा है?
पहली बार पंचायत के चुनाव में ईवीएम का प्रयोग किया जा रहा है जिन 4 पदों ग्राम पंचायत सदस्य, मुखिया, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य के चुनाव में अधिक प्रतिद्वंद्विता रहती है। उनमें ईवीएम का प्रयोग किया जा रहा है। वहीं बूथों पर बोगस वोटिंग को रोकने के लिए पहली बार बायोमेट्रिक से मतदाताओं का सत्यापन कराया जा रहा है जो बड़ा गेमचेंजर साबित हो रहा है इन प्रयोगों से फर्जी मतदान की संभावना नहीं है वह वोटिंग करने वाले भी बूथों पर जाने से बच रहे हैं
- चुनाव में नए चेहरे उभरकर अधिक सामने आ रहे हैं इसकी बड़ी वजह क्या है?
आयोग ने चुनाव को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए इस बार कुछ नए प्रयोग किए हैं। आयोग का काम वोटरों के लिए एक ऐसा लेवल प्लेयिंग फील्ड तैयार करना था, ताकि वह बेहतर तरीके से मतदान कर अपनी मर्जी के जनप्रतिनिधियों को चुन सकें। लोग अपनी मर्जी से जन प्रतिनिधि चुन रहे हैं। कितने नए चेहरे जीत कर आए और पुराने चेहरे चुनाव हार गए या हार रहे हैं। इसका विश्लेषण आने वाले दिनों में किया जाएगा।
- तीन चरणों के चुनाव में ऐसी शिकायतें भी आ रही है कि कई बूथों पर बायोमेट्रिक सिस्टम फेल रहा?
यह बिल्कुल नया प्रयोग है किसी भी चुनाव के लिए पहले चरण के मतदान में ऐसी शिकायतें मिली थी, कि कई जगह बायोमैट्रिक सिस्टम में गड़बड़ी आई हालांकि अगर बढ़िया नेटवर्क और बैटरी से संबंधित अधिक रही दूसरे चरण में यह लगभग 60% और तीसरे चरण में 90% तक सफल रहा आने वाले चरणों में और बेहतर काम करेगा इसकी पूरी उम्मीद हैं।
- नई टेक्नोलॉजी के कारण चुनाव खर्च में भी वृद्धि होगी, पिछले चुनावों की तुलना में खर्च कितना बढ़ा है?
नई टेक्नोलॉजी आने से चुनाव खर्च में अधिक वृद्धि नहीं हुई। हां इस चुनाव में अधिक मैन पावर का उपयोग किया जा रहा है। ईवीएम लाने के लिए दूसरे प्रदेशों में जिलों से टीम भेजी गई मतदान के लिए अधिक संख्या में लोग लगाए जा रहे हैं। इन सब चीजों से चुनाव खर्च जरूर बढ़ रहा है, हालांकि यह भी देखना होगा कि विधानसभा के चुनाव में एक बूथ पर कितना खर्चा होता है, और इस चुनाव में कितना हो रहा है क्योंकि चुनाव तो चुनाव ही होता है।
- आने वाले नगर पालिका चुनाव में भी बायोमेट्रिक सिस्टम का प्रयोग होगा?
अब सभी चुनावों में बायोमेट्रिक का प्रयोग होगा अगले साल होने वाले नगर पालिका के चुनाव में भी इसका इस्तेमाल होगा, क्योंकि नई टेक्नोलॉजी के प्रयोग से चुनाव को और अधिक पारदर्शी बनाया जा रहा है। लोगों की जवाबदेही तय की जा रही है। चुनावों में अभी तक सिर्फ तीन शब्दों का प्रयोग होता रहा है- स्वतंत्र, स्वच्छ और पारदर्शी लेकिन इस बार दो और नए शब्द जोड़ दिए गए हैं उत्तर दायित्व और सहभागिता। इस चुनाव में नामांकन से लेकर चुनाव परिणाम तक में डिजिटलाइजेशन का प्रयोग हो रहा है। बूथों पर मतदान कर्मियों की तैनाती, मॉक, पोल, स्ट्रांग रूम में ईवीएम जमा करने और चुनाव परिणाम शब्द में टेक्नोलॉजी का प्रयोग हो रहा है। इससे मतदान में लगे लोगों का की जवाबदेही भी तय की जा रही है और प्रत्याशियों और वोटरों की सहभागिता भी बड़ी है।
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